उत्तराखंड में आपदा की आशंका! चार ग्लेशियर झीलों की हो रही जांच

चकराता टाइम्स समाचार: उत्तराखंड सरकार ने राज्य में मौजूद चार उच्च जोखिम वाली ग्लेशियल झीलों के आकलन और निगरानी के लिए एक व्यापक कार्य योजना तैयार की है। यह कदम जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) के बढ़ते खतरे को देखते हुए उठाया गया है। इन झीलों के टूटने से निचले क्षेत्रों में भारी तबाही और जान-माल का नुकसान हो सकता है, जैसा कि अतीत में केदारनाथ (2013) और धौलीगंगा (2021) जैसी घटनाओं में देखा जा चुका है।

खतरे का कारण और उसकी गंभीरता

उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में सैकड़ों ग्लेशियल झीलें मौजूद हैं, जिनमें से कई को उच्च जोखिम वाली श्रेणी में रखा गया है। इन झीलों में पानी का दबाव बढ़ने या मोरेन (मलबे के बांध) के कमजोर होने से बाढ़ का खतरा बना रहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ी है, जिससे इन झीलों का आकार और जोखिम दोनों बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में पहले ही 13 ग्लेशियल झीलों को संवेदनशील माना गया है, जिनमें से पांच को ‘श्रेणी-ए’ (अति संवेदनशील) में रखा गया है। इनमें से चार झीलों का आकलन अब प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा।

आकलन की योजना

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) के नेतृत्व में यह आकलन कार्य किया जाएगा। पहले चरण में चमोली जिले की धौलीगंगा बेसिन में स्थित वसुधारा झील का सर्वे पूरा हो चुका है। अब दूसरे चरण में पिथौरागढ़ जिले में मौजूद बाकी चार उच्च जोखिम वाली झीलों की गहराई, चौड़ाई, जल निकासी मार्ग और आयतन का अध्ययन किया जाएगा। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम शामिल होंगे:

  • उन्नत तकनीक का उपयोग: झीलों की निगरानी के लिए वाटर लेवल सेंसर, स्वचालित वेदर स्टेशन और थर्मल इमेजिंग जैसे उपकरण स्थापित किए जाएंगे। ये उपकरण झीलों में होने वाले बदलावों को समय रहते पकड़ने में मदद करेंगे।
  • विशेषज्ञों की भागीदारी: वाडिया हिमालयन भूविज्ञान संस्थान जैसे संगठनों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा ताकि झीलों के स्वरूप, सिल्ट, मलबे और अन्य जोखिम कारकों का वैज्ञानिक विश्लेषण हो सके।
  • अर्ली वार्निंग सिस्टम: आकलन के बाद इन झीलों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की योजना है, जो संभावित खतरे से पहले स्थानीय प्रशासन और समुदायों को अलर्ट कर सके।

चुनौतियां और भविष्य की रणनीति

आकलन कार्य में कई चुनौतियां भी हैं। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पहुंचना, मौसम की अनिश्चितता और तकनीकी संसाधनों की कमी इस प्रक्रिया को जटिल बनाती है। फिर भी, सरकार ने अगले साल से नियमित आधार पर इन झीलों की निगरानी के लिए विशेष टीमें और एजेंसियां भेजने का फैसला किया है। साथ ही, केंद्र सरकार के सहयोग से 150 करोड़ रुपये की राष्ट्रीय हिमनद झील विस्फोट बाढ़ जोखिम शमन परियोजना के तहत उत्तराखंड में जोखिम कम करने के उपाय किए जा रहे हैं।

स्थानीय समुदायों की भूमिका

सरकार का मानना है कि स्थानीय लोगों को इस प्रक्रिया में शामिल करना जरूरी है। जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे ताकि लोग खतरे के संकेतों को समझ सकें और समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकें। इसके अलावा, पर्यटन पर निर्भर क्षेत्रों में GLOF के आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए भी विशेष योजनाएं बनाई जा रही हैं।

निष्कर्ष

उत्तराखंड सरकार चार उच्च जोखिम वाली ग्लेशियल झीलों का आकलन न केवल जोखिमों की पहचान करेगी, साथ ही भविष्य में ऐसी आपदाओं को रोकने के लिए ठोस उपाय भी सुझाए जायेंगे। अगर यह योजना प्रभावी ढंग से लागू हुई तो न केवल स्थानीय समुदाय सुरक्षित होंगे, बल्कि उत्तराखंड की प्राकृतिक संपदा और पर्यटन उद्योग को भी दीर्घकालिक सुरक्षा मिलेगी।

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